Wednesday, February 6, 2008

जम्हूरियत में हिंद ---

न कोई डर है यहां न कोई जुर्माना है ,
जम्हूरियत में हिंद घूमता मस्ताना है ।

हम भी नंगे हैं यहां आप भी दिखते नंगे,
ये सियासत भी शानदार गुसलखाना है ।

लोग हंसते हैं बात सुनके साफगोई की,
नया है दौर और फलसफ़ा पुराना है ।

किस कदर खा रहे जनाब यहां न पूछो,
भूल जाते हैं एक दिन यहां से जाना है ।

कितनी कम उम्र में किसने कमा लिया कितना,
अक्लमंदी का यही एक ही पैमाना है ।

मेरे अच्छे दिनों का साथी

दुश्मनी उसकी-मेरी ज़ाती है,
मेरे अच्छे दिनों का साथी है ।

मेरा उससे नहीं झगड़ा कोई ,
नज़र खुद बचके निकल जाती है ।

मिल के महफ़िल में मुस्कुराते हैं,
दुनियादारी निभानी आती है ।

उसकी संगत में बहुत कुछ सीखा,
हर ख़ता कुछ नया सिखाती है ।

सच कहूं वह गुनाह मेरा था ,
पीढ़ियां जिसकी सजा पाती हैं ।

चांद पे जाने वाले

हमको हर बात में नादान बताने वाले ,
हैं जमींदोज़ कभी चांद पे जाने वाले ।

बिना आवाज की लाठी पे भरोसा रखिए,
टूट जाएंगे सितम आप पे ढाने वाले ।

नहीं कर सकते हमारी व तुम्हारी बातें,
बात दर बात में अपनी ही सुनाने वाले ।

लूट लेना बड़ा आसान है औरों का जहां ,
जहां में मिलते ज़रा कम हैं बसाने वाले ।

ख़ाक लेकर हैं खड़े हाथ में अपने घर की ,
आशियां रात में औरों का जलाने वाले ।

छींटाकशी का दौर है

छींटाकशी का दौर है कपड़े बचाइए ,
बेहतर हो गर्द औरों पे खुद न उड़ाइए ।

कहना-कहाना शगल है दुनिया जहान का,
ग़र आप सही हैं तो सिर्फ मुस्कुराइए ।

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे जहान के,
नज़रों को खुद की ओर जरा सा झुकाइए ।

खारे हैं पर जज़्बात का आईना हैं आंसू ,
अपने हैं कोई ग़ैर नहीं मत बहाइए ।

माना कि हैं हसीन, बड़े पुरसुकून भी ,
पर ख्वाब तो बस ख्वाब हैं अब लौट आइए ।

बेहतर था कि चुपचाप शहर को निहारते ,
अब बात निकाली है तो परदा उठाइए ।