कौन कह रहा मरी दामिनी
गली-गली में खड़ी दामिनी
खाकी-खादी के चक्कर में
हर पल-हर दिन पड़ी दामिनी
मूक-बधिर बेशर्म व्यवस्था
देख शर्म से गड़ी दामिनी
क्या अब भी कुछ सुधर सकेगा
प्रश्न बनी यह खड़ी दामिनी
अगर न फिर से सो जाएं हम
एक क्रांति की कड़ी दामिनी
(29 दिसंबर, 2012 - तेरह दिन के संघर्ष के बाद सिंगापुर में उस लड़की का निधन हो गया, जिसके साथ 16 दिसंबर को दिल्ली में दुराचार हुआ था । अफसोस के साथ उपजी पंक्तियों ने लिया ग़ज़ल का रूप)
Saturday, December 29, 2012
Wednesday, December 26, 2012
न रात जाए
सरकती यूँ ही न रात जाए
न रात जाए न साथ जाए
जुबाँ पे तेरी मचल रही है
न रह अधूरी वो बात जाए
चमकती आँखों की रोशनी पर
फ़िदा हो बारावफ़ात जाए
क्युँ फ़िक्र करते हैं दुनिया भर की
न इश्क करने से जात जाए
है रिस्क का खेल ये मोहब्बत
फ़तह मिले या बिसात जाए
(26 दिसंबर, 2012)
न रात जाए न साथ जाए
जुबाँ पे तेरी मचल रही है
न रह अधूरी वो बात जाए
चमकती आँखों की रोशनी पर
फ़िदा हो बारावफ़ात जाए
क्युँ फ़िक्र करते हैं दुनिया भर की
न इश्क करने से जात जाए
है रिस्क का खेल ये मोहब्बत
फ़तह मिले या बिसात जाए
(26 दिसंबर, 2012)
झुर्रियां
सफेदी बाल पर गाल पर झुर्रियां
खिल रहीं सूरते हाल पर झुर्रियां
इक तिजोरी तजुर्बों की समझो इन्हें
ब्याज हैं मूल के माल पर झुर्रियां
जिंदगी के जुलम सब बयां कर रहीं
हैं इबारत सी दीवाल पर झुर्रियां
नाती-पोतों के संग खिलखिलाती हुई
नाचती उनकी हर ताल पर झुर्रियां
दीजिए प्यार सत्कार इनको सदा
लुटा देंगी दुआ थाल भर झुर्रियां
काटते हम वही जो हैं बोते कभी
रख रही हैं नज़र काल पर झुर्रियां
(26 दिसंबर, 2012)
खिल रहीं सूरते हाल पर झुर्रियां
इक तिजोरी तजुर्बों की समझो इन्हें
ब्याज हैं मूल के माल पर झुर्रियां
जिंदगी के जुलम सब बयां कर रहीं
हैं इबारत सी दीवाल पर झुर्रियां
नाती-पोतों के संग खिलखिलाती हुई
नाचती उनकी हर ताल पर झुर्रियां
दीजिए प्यार सत्कार इनको सदा
लुटा देंगी दुआ थाल भर झुर्रियां
काटते हम वही जो हैं बोते कभी
रख रही हैं नज़र काल पर झुर्रियां
(26 दिसंबर, 2012)
Wednesday, November 7, 2012
रोशनी नीलाम होगी
जैसे-जैसे शाम होगी,
रोशनी नीलाम होगी ।
बोलियाँ फर्जी लगाकर,
कौड़ियों के दाम होगी ।
आपकी मेहनतकशी अब,
अर्थ बिन नाकाम होगी ।
नेकिनियती भी हमारी,
रोशनी नीलाम होगी ।
बोलियाँ फर्जी लगाकर,
कौड़ियों के दाम होगी ।
आपकी मेहनतकशी अब,
अर्थ बिन नाकाम होगी ।
नेकिनियती भी हमारी,
बेवजह बदनाम होगी ।
ख़ुदकुशी ज़िंदादिलों की,
सोचकर अंजाम होगी ।
ख़ुदकुशी ज़िंदादिलों की,
सोचकर अंजाम होगी ।
( 6 नवंबर, 2012)
Wednesday, May 16, 2012
गुंजाइश रहे
दोस्त ! जमकर हो बहस और जोर-अजमाइश रहे,
किंतु वाले - कुम सलामी की भी गुंजाइश रहे ।
एक मानी दो भी मानी चार मानी आपकी,
कब तलक माना करें गर रोज फरमाइश रहे ।
फ़र्क उन्नीस-बीस का हो तो फ़रक पड़ता नहीं,
किस तरह रिश्ते चलें जब सात-सत्ताइस रहे ।
न मिले तो कोई शिकवा न करो भगवान से,
जब मिले इतनी पियो फिर न कभी ख्वाहिश रहे ।
गुल के संग हों खार जो दो-चार तो चल जाएंगे,
बाग क्या करना जहां खारों की पैदाइश रहे ।
- ओमप्रकाश तिवारी
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