Friday, September 6, 2013

परजा झेले आपद्काल

राजा की थैली में माल,
परजा झेले आपद्काल ।

चले काफिलों में सरकार,
जनता को पेट्रोल मुहाल ।

जूते बनते हैं राजा के,
खींच-खींच परजा की खाल ।

काट-काट मेरी ही जेब,
परस रहे हमको ही थाल ।

मुर्ग मुसल्लम खाएं वो,
मेरी थाली पतली दाल ।

करें भरोसा किस पर आज,
बैठे हैं उल्लू हर डाल । 

Sunday, August 25, 2013

कटवा कर नाखून

कटवा कर नाखून शहीदों में लिखवाने नाम चले,
मरने की जब बात चली तो करके मियाँ सलाम चले ।

बड़ी फिक्र है राजा जी को अपने मुल्क रिआया की,
खूब बहे आँसू घड़ियाली फिर घर जाकर जाम चले ।

जिनकी शान बढ़ाने ख़ातिर अपनी जान लड़ा बैठे,
गले लगाने के बजाय वो दे करके ईनाम चले ।

हमने उम्र बिता दी मंजिल तक सबको पहुँचाने में,
मेरी मैयत छोड़ सभी जन अपने-अपने काम चले ।

एक तरफ से संबंधों की ताली रहे बजाते हम,
उनकी बारी आई तो वह देकर पूर्ण विराम चले ।

(20 अगस्त, 2013) 

Sunday, May 19, 2013

खेल

खेल हैं या खेल के व्यापार हैं,
खेल में भी जेल के अब द्वार हैं।

थे भले अपने कबड्डी और लट्टू,
खेल अब तो जुए का बाजार हैं।

मत करो उम्मीद पकड़े जाएंगे,
चोर की रक्षा में पहरेदार हैं ।

बँट रही सबको बराबर रेवड़ी,
इनके आका भी बड़े खुंख्वार हैं।

खेलते कुछ लोग हैं मैदान पर,
कर रहे सौदा जो रिश्तेदार हैं।

धूर्त को हीरो बनाने के लिए,
आप और हम भी तो जिम्मेदार हैं।

(19 मई, 2013)

Tuesday, January 22, 2013

जन गण मन की बात न कर

जन गण मन की बात न कर
तू बस अपनी जेबें भर

तेरी ख़ातिर देश पड़ा
चारागाह समझकर चर

अपना था तू कल तक तो
आज निकल आए हैं पर

हमको भूखा रहने दे
ब्रेड के संग तू चाट बटर

याद आती अंग्रेजों की
वह भी थे तुझसे बेहतर

जनप्रतिनिधि कहलाए तू
तुझसे जन काँपें थर - थर

आज बन गया राजा तू
घूम रहा था कल दर - दर

दवा न तेरे काटे की
शरमाएं तुझसे विषधर

जनता बदल रही तेवर
मौका है तू जल्द सुधर

नीचे तेरी चलती है
ऊपर वाले से तो डर

( 22 जनवरी, 2013) 

रंग रंग के साँप

रंग रंग के साँप हमारी दिल्ली में,
क्या कर लेंगे आप हमारी दिल्ली में । 

हाफ शर्ट में घूम रहे हैं मुंबइया,
लोग रहे हैं काँप हमारी दिल्ली में ।

घोटालों की फाइल गायब कर करके,
खूब रहे हैं ताप हमारी दिल्ली में ।

मुल्क दरिद्दर बना हुआ है बना रहे,
चंद रहे हैं छाप हमारी दिल्ली में ।

दिल छोटे व नाक बड़ी उस्तादों की,
नाप सके तो नाप हमारी दिल्ली में ।

जब से गाँधी बाबा दुनिया छोड़ गए,
सच कहना है पाप हमारी दिल्ली में ।

(22 जनवरी, 2013)


घटना वास्तव में जनवरी, 2012 की है। वीटी से रात 10.15 बजे ट्रेन में बैठा ही था कि दिल्ली से वाट्सअप पर भाई विष्णु त्रिपाठी जी का एक मैसेज मिला । लिखा था - रंग रंग के साँप हमारी दिल्ली में, क्या कर लेंगे आप हमारी दिल्ली में । मैंने इसका जवाब भी तुरंत दे दिया - हाफ शर्ट में घूम रहे हैं मुंबइया, लोग रहे हैं काँप हमारी दिल्ली में। जवाब देने के बाद मुझे लगा कि ये पंक्तियां आगे बढ़ सकती हैं। देखते ही देखते दादर तक मेरी ग़ज़ल पूरी हो चुकी थी। 

Thursday, January 10, 2013

तुम बहाओ खून

रात के एक बज रहे हैं। मेंढर में शहीद हुए दोनों जवानों के रोते परिवारों ने आँखों से नींद उड़ा दी है। अपनी भावनाएं व्यक्त करने के सिवा मैं और क्या कर सकता हूं भला ? आप भी हमारी भावनाओं के सहयात्री बनें - 

तुम बहाओ खून हम आँसू बहाएंगे जवां
दोस्ती का हाथ दुश्मन से मिलाएंगे जवां

रो रहे माता पिता विधवा तो रोने दो उन्हें
चार दिन की बात है फिर भूल जाएंगे जवां

हैं जरूरी क्रिकेट के रिश्ते भी सरहद पार से
हम विकेट के रूप में गिन-गिन गंवाएंगे जवां

कारगिल मेंढर सियाचिन में जमो तुम बर्फ में
पॉलिसी हम रूम हीटर में बनाएंगे जवां

वाकई तेरी शहादत भी बड़ी अनमोल है
इस बहाने हम कफन भी बेच खाएंगे जवां

(१० जनवरी, २०१३)