Friday, September 6, 2013

परजा झेले आपद्काल

राजा की थैली में माल,
परजा झेले आपद्काल ।

चले काफिलों में सरकार,
जनता को पेट्रोल मुहाल ।

जूते बनते हैं राजा के,
खींच-खींच परजा की खाल ।

काट-काट मेरी ही जेब,
परस रहे हमको ही थाल ।

मुर्ग मुसल्लम खाएं वो,
मेरी थाली पतली दाल ।

करें भरोसा किस पर आज,
बैठे हैं उल्लू हर डाल ।