न एक हार से मन अपना बेक़रार करो ,
बस अपने वक्त का चुपचाप इंतज़ार करो ।
करो न वक्त फ़ना जी के बुरे ख्वाबों में,
ये ज़िंदगी है, नई सुबह से दो-चार करो ।
है ख़ता ठीक एक बार सिखाने के लिए,
वो ख़ता है जो ख़ता करके बार-बार करो ।
कह गए हैं पते की बात जीतने वाले ,
सही समय पे सही मोर्चे पर वार करो ।
मूंद कर आंख दूसरों पे कर लिया जितना,
कम-स-कम उतना तो खुद पर भी ऐतबार करो ।
- ओमप्रकाश तिवारी
Tuesday, July 22, 2008
Saturday, July 19, 2008
ईश्वर न दे ऐसे दाग
मोटी रोटी सूखा साग
नहीं चाहिए लंबा राग
अंतर्मन उबकाई ले
ईश्वर न दे ऐसे दाग
यादें बहुत सताती हैं
मत अतीत से कर अनुराग
पीछा करती परछाईं
भाग सके तो तू भी भाग
जाने क्या-क्या करवाती
जठरों की ये पापी आग
मंजिल कब की निकल गई
जाग मुसाफिर अब तो जाग
नहीं चाहिए लंबा राग
अंतर्मन उबकाई ले
ईश्वर न दे ऐसे दाग
यादें बहुत सताती हैं
मत अतीत से कर अनुराग
पीछा करती परछाईं
भाग सके तो तू भी भाग
जाने क्या-क्या करवाती
जठरों की ये पापी आग
मंजिल कब की निकल गई
जाग मुसाफिर अब तो जाग
Friday, July 4, 2008
समझौतों पर रोना क्या
रोज हो रहे समझौतों पर रोना क्या
अपनी ख़ातिर मिट्टी क्या और सोना क्या
समीकरण सत्ता के रोज बदलते हैं
प्रजाजनों को पाना क्या और खोना क्या
दाल गगनचुंबी और आटा गीला है
चावल बिन ठन ठन गोपाल भगोना क्या
शाही दावत में बनजारे लूट रहे
हाथ लगे जो पत्तल क्या और दोना क्या
मुल्क पराया जान शिखंडी राज करें
बेगानेपन की शादी क्या गौना क्या
नोटः ये रचना वर्तमान राजनीतिक संदर्भों को ध्यान में रखकर पढ़ेगे तो और मजा आएगा ।
अपनी ख़ातिर मिट्टी क्या और सोना क्या
समीकरण सत्ता के रोज बदलते हैं
प्रजाजनों को पाना क्या और खोना क्या
दाल गगनचुंबी और आटा गीला है
चावल बिन ठन ठन गोपाल भगोना क्या
शाही दावत में बनजारे लूट रहे
हाथ लगे जो पत्तल क्या और दोना क्या
मुल्क पराया जान शिखंडी राज करें
बेगानेपन की शादी क्या गौना क्या
नोटः ये रचना वर्तमान राजनीतिक संदर्भों को ध्यान में रखकर पढ़ेगे तो और मजा आएगा ।
Thursday, July 3, 2008
रीढ़ की हड्डियों के बिना आदमी
रीढ़ की हड्डियों के बिना आदमी
जाने किस ऐंठ में है तना आदमी
श्वेत वस्त्रों में कालर को ताने हुए
नाक तक गंदगी में सना आदमी
बदहजम क्रीम खाकर भी क्रीमीलेयर
है कहीं खा रहा बस चना आदमी
अब नहीं बात का उसपे होता असर
जाने किस खाल का है बना आदमी
देख दुनिया को बाज़ार बनते हुए
चाहता खुद को भी बेचना आदमी
जाने किस ऐंठ में है तना आदमी
श्वेत वस्त्रों में कालर को ताने हुए
नाक तक गंदगी में सना आदमी
बदहजम क्रीम खाकर भी क्रीमीलेयर
है कहीं खा रहा बस चना आदमी
अब नहीं बात का उसपे होता असर
जाने किस खाल का है बना आदमी
देख दुनिया को बाज़ार बनते हुए
चाहता खुद को भी बेचना आदमी
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