राजा की थैली में माल,
परजा झेले आपद्काल ।
चले काफिलों में सरकार,
जनता को पेट्रोल मुहाल ।
जूते बनते हैं राजा के,
खींच-खींच परजा की खाल ।
काट-काट मेरी ही जेब,
परस रहे हमको ही थाल ।
मुर्ग मुसल्लम खाएं वो,
मेरी थाली पतली दाल ।
करें भरोसा किस पर आज,
बैठे हैं उल्लू हर डाल ।
परजा झेले आपद्काल ।
चले काफिलों में सरकार,
जनता को पेट्रोल मुहाल ।
जूते बनते हैं राजा के,
खींच-खींच परजा की खाल ।
काट-काट मेरी ही जेब,
परस रहे हमको ही थाल ।
मुर्ग मुसल्लम खाएं वो,
मेरी थाली पतली दाल ।
करें भरोसा किस पर आज,
बैठे हैं उल्लू हर डाल ।