रंग रंग के साँप हमारी दिल्ली में,
क्या कर लेंगे आप हमारी दिल्ली में ।
हाफ शर्ट में घूम रहे हैं मुंबइया,
लोग रहे हैं काँप हमारी दिल्ली में ।
घोटालों की फाइल गायब कर करके,
खूब रहे हैं ताप हमारी दिल्ली में ।
मुल्क दरिद्दर बना हुआ है बना रहे,
चंद रहे हैं छाप हमारी दिल्ली में ।
दिल छोटे व नाक बड़ी उस्तादों की,
नाप सके तो नाप हमारी दिल्ली में ।
जब से गाँधी बाबा दुनिया छोड़ गए,
सच कहना है पाप हमारी दिल्ली में ।
(22 जनवरी, 2013)
घटना वास्तव में जनवरी, 2012 की है। वीटी से रात 10.15 बजे ट्रेन में बैठा ही था कि दिल्ली से वाट्सअप पर भाई विष्णु त्रिपाठी जी का एक मैसेज मिला । लिखा था - रंग रंग के साँप हमारी दिल्ली में, क्या कर लेंगे आप हमारी दिल्ली में । मैंने इसका जवाब भी तुरंत दे दिया - हाफ शर्ट में घूम रहे हैं मुंबइया, लोग रहे हैं काँप हमारी दिल्ली में। जवाब देने के बाद मुझे लगा कि ये पंक्तियां आगे बढ़ सकती हैं। देखते ही देखते दादर तक मेरी ग़ज़ल पूरी हो चुकी थी।
Tuesday, January 22, 2013
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1 comment:
झन्नाटेदार व्यंगात्मक व्यंग
फिरंगी राज में ऐसा ना था
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