Sunday, October 17, 2010

मुंह ना खोलो

चिस्ती साहब मुंह ना खोलो,
मुंह खोलो तो सच ना बोलो ।

किसको प्यारा भाईचारा,
राजनीति की गिरह न खोलो ।

तोल रहे हैं सब जन जिनकी,
तोल सको तो तुम भी तोलो ।

गिर जाते हैं अकड़ू पौधे,
चलो हवा के संग-संग डोलो ।

डायबिटिक होती है शक्कर,
नीम करेले का रस घोलो ।

आप पिटे तो चुप हैं सारे,
बोलो भाई कुछ तो बोलो ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Saturday, October 9, 2010

अब आप अपनी कीजिए

पंच अपनी कर गए अब आप अपनी कीजिए,
लीजिए हिंदोस्तां और एक तिहाई दीजिए ।

पांच गांवों के लिए थे लड़ मरे इतिहास है,
कुछ नया रचते हैं अब दोहराव तो ना कीजिए ।

है मिला सम्मान दुनिया में उसे जिसने दिया,
वक्त है देने की ख़ातिर हाथ ऊपर कीजिए ।

दूध में मधु हो जरा तो जायका बढ़ जाएगा,
टाटरी के स्वाद से परहेज थोड़ा कीजिए ।

आपके मज़हब को ज्यादा आपसे हैं जानते,
उन सियासत दां से तौबा सिर्फ तौबा कीजिए ।

Friday, October 1, 2010

अब तो है आप पर---

अब तो है आप पर कि हाथ मिलाकर चलिए,
या जमींदोज़ हैं जो उनको जिलाकर चलिए ।

लोग बैठे हैं सियासत की बिसातें लेकर,
सुर में सुर आप न अब उनके मिलाकर चलिए ।

साथ रहना है हमें मुल्क है हम दोनों का,
एक परिवार में क्यूं शिकवा-गिला कर चलिए ।

याद रखने को बहुत सारी हसीं यादें हैं,
बुरे जो ख्वाब थे अब उनको भुलाकर चलिए ।

गुजर गया है जमाना न साथ बैठे हैं,
पीजिए हमसे भी और खुद भी पिलाकर चलिए ।
- ओमप्रकाश तिवारी