मोटी रोटी सूखा साग
नहीं चाहिए लंबा राग
अंतर्मन उबकाई ले
ईश्वर न दे ऐसे दाग
यादें बहुत सताती हैं
मत अतीत से कर अनुराग
पीछा करती परछाईं
भाग सके तो तू भी भाग
जाने क्या-क्या करवाती
जठरों की ये पापी आग
मंजिल कब की निकल गई
जाग मुसाफिर अब तो जाग
Saturday, July 19, 2008
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6 comments:
बहुत बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।
मंजिल कब की निकल गई
जाग मुसाफिर अब तो जाग
बेहतरीन रचना...
Kya Baat Hai Panditji. Good work done. Keep it up - Dilip Awasthi, DRE The Times of India, Lucknow
प्रिय भाई ओमप्रकाश जी!
आपका सन्देश मिला और इस सन्देश के सहारे मैं आपके दोनों ब्लॉगों पर जा पहुँचा। आपकी रचनाएँ अच्छी लगीं। बेहद अच्छी लगीं। क्या आपकी ग़ज़लें हम
कविता-कोश (www.kavitakosh.org) में शामिल कर सकते हैं? इसके लिए हमें आपका विस्तृत परिचय (जन्मतिथि, जन्मवर्ष, जन्मस्थान, आपके प्रकाशित कविता संग्रहों की सूची आदि की जानकारी ज़रूरी है) तथा आपकी बहुत सारी ग़ज़लें चाहिएँ। आपकी एक तस्वीर भी चाहिए, जिसमें आपका चेहरा बड़ा और साफ़-सुथरा दिखाई दे।
हमें आपके पत्रोत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर
अनिल जनविजय
सम्पादक
कविता कोश
kavitakosh@gmail.com
accha keh rahe hain bhai ....tewar qayem rakhiye..yeh tewar hi kaam ke hain...
Tehseen Munawer
bahut khoob jija ji.....
nw i m also here fr enjoing ur creativity..... i was nt aware about ur talent, bt nw i'll b regular here....
ANOOP MISHRA
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