न एक हार से मन अपना बेक़रार करो ,
बस अपने वक्त का चुपचाप इंतज़ार करो ।
करो न वक्त फ़ना जी के बुरे ख्वाबों में,
ये ज़िंदगी है, नई सुबह से दो-चार करो ।
है ख़ता ठीक एक बार सिखाने के लिए,
वो ख़ता है जो ख़ता करके बार-बार करो ।
कह गए हैं पते की बात जीतने वाले ,
सही समय पे सही मोर्चे पर वार करो ।
मूंद कर आंख दूसरों पे कर लिया जितना,
कम-स-कम उतना तो खुद पर भी ऐतबार करो ।
- ओमप्रकाश तिवारी
Tuesday, July 22, 2008
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9 comments:
ओम प्रकाश जी, बहुत बढिया रचना लिखी है।बधाई स्वीकारें।
है ख़ता ठीक एक बार सिखाने के लिए,
वो ख़ता है जो ख़ता करके बार-बार करो ।
बहुत बढिया रचना..
है ख़ता ठीक एक बार सिखाने के लिए,
वो ख़ता है जो ख़ता करके बार-बार करो ।
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल है...ओम भाई....हर शेर कबीले तारीफ है. बधाई
नीरज
bahut achhhee lagee aapkee gazlen.
बहुत बढिया ओपीजी...
आपका ये रुप हमे बहुत भा गया..
ऐसी ही आप की प्रतिभा को चार चाँद लगे
- सुनील घुमे
ईमानदारी से बताइए. आप क्या करते हैं?
बहुत ही सुन्दर रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
प्रिय भाई ओमप्रकाश जी!
आपका सन्देश मिला और इस सन्देश के सहारे मैं आपके दोनों ब्लॉगों पर जा पहुँचा। आपकी रचनाएँ अच्छी लगीं। बेहद अच्छी लगीं। क्या आपकी ग़ज़लें हम
कविता-कोश (www.kavitakosh.org) में शामिल कर सकते हैं? इसके लिए हमें आपका विस्तृत परिचय (जन्मतिथि, जन्मवर्ष, जन्मस्थान, आपके प्रकाशित कविता संग्रहों की सूची आदि की जानकारी ज़रूरी है) तथा आपकी बहुत सारी ग़ज़लें चाहिएँ। आपकी एक तस्वीर भी चाहिए, जिसमें आपका चेहरा बड़ा और साफ़-सुथरा दिखाई दे।
हमें आपके पत्रोत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर
अनिल जनविजय
सम्पादक
कविता कोश
इस गजल की यही खूबी है कि इसका हर शेर बोलता है। कोई शेर ऐसा नहीं, जिस पर वाह न उठे...। बधाई...।
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