अब तो है आप पर कि हाथ मिलाकर चलिए,
या जमींदोज़ हैं जो उनको जिलाकर चलिए ।
लोग बैठे हैं सियासत की बिसातें लेकर,
सुर में सुर आप न अब उनके मिलाकर चलिए ।
साथ रहना है हमें मुल्क है हम दोनों का,
एक परिवार में क्यूं शिकवा-गिला कर चलिए ।
याद रखने को बहुत सारी हसीं यादें हैं,
बुरे जो ख्वाब थे अब उनको भुलाकर चलिए ।
गुजर गया है जमाना न साथ बैठे हैं,
पीजिए हमसे भी और खुद भी पिलाकर चलिए ।
- ओमप्रकाश तिवारी
Friday, October 1, 2010
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2 comments:
साथ रहना है हमें मुल्क है हम दोनों का,
एक परिवार में क्यूं शिकवा-गिला कर चलिए ।
-काश!! लोग समझ पाये. बहुत उम्दा संदेश दिया है इस शेर के माध्यम से आपने.
पब्लिक को दीवाना बना दिया तिवारी जी आपने तो। जय हो।
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