पंच अपनी कर गए अब आप अपनी कीजिए,
लीजिए हिंदोस्तां और एक तिहाई दीजिए ।
पांच गांवों के लिए थे लड़ मरे इतिहास है,
कुछ नया रचते हैं अब दोहराव तो ना कीजिए ।
है मिला सम्मान दुनिया में उसे जिसने दिया,
वक्त है देने की ख़ातिर हाथ ऊपर कीजिए ।
दूध में मधु हो जरा तो जायका बढ़ जाएगा,
टाटरी के स्वाद से परहेज थोड़ा कीजिए ।
आपके मज़हब को ज्यादा आपसे हैं जानते,
उन सियासत दां से तौबा सिर्फ तौबा कीजिए ।
Saturday, October 9, 2010
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10 comments:
शानदार और सार्थक पोस्ट......आभार
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सार्थक और सटीक बात कही।
zabardast ghazal hai ...har sher gaaal pe pada thappad hai ... hairat hai ki log is tarah kee rachnaon tak nahi pahunch paate ....
बहुत सटीक और असरदार!
omji, raju bhai ki sifarish par aap ke blog ki yatra ki.
gazale padhkar laga ki muze to yaha bahut pahle aajana chahiye tha. khair,jab jaage tab savera.aap ke parichay me blitz ko dekha muze mumbai ke current ke apne 1978-82 ka waqt yaad aagaye.ab yaha aata rahuga.
ओमप्रकाश भईया सादर प्रणाम ,
एक सकारात्मक , समयानकुल , और सच्चाई को अपने अंदर समेटे हुए यह रचना वाकई बेहतरीन बन पडी है ।
राजु भईया को धन्यवाद जो इस रचना से हमरा परिचय कराया ।
आज एक रचनाकारो से हमे ऐसे ही रचना की उम्मीद रहती है जिसमे कुछ सकारात्मक और कुछ सही चीज दिखाई देती है समाज के लिये , देश के लिये ।
आपका
नवीन कुमार ( भोजपुरिया )
"पांच गांवों के लिए थे लड़ मरे इतिहास है,
कुछ नया रचते हैं अब दोहराव तो ना कीजिए । "
सुंदर, प्रासंगिक और सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
jabardast bhai.....
पांच गांवों के लिए थे लड़ मरे इतिहास है,
कुछ नया रचते हैं अब दोहराव तो ना कीजिए ।
..........waah mubarak ho
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