Sunday, October 21, 2007

दो और दो पांच

दो और दो चार नहीं दो और दो पांच ,
झूठ के समंदर में डूब गया सांच ।

गिद्धों ने गौरैया का लूटा देश ,
बैठी है कौवों कि हंसों पर जांच ।

सौदागर पत्थर के देखो तो आज,
जड़वा कर बैठे हैं महलों में कांच ।

अमन-चैन कायम है कहते कुछ लोग,
सड़कों पर जारी है फौजों का मार्च ।

श्मशानों में बजता शाही मृदंग ,
दंग शहर देख रहा नंगों का नाच ।

1 comment:

Ashish Maharishi said...

वाह कविता में दम है