दोस्त ! जमकर हो बहस और जोर-अजमाइश रहे,
किंतु वाले - कुम सलामी की भी गुंजाइश रहे ।
एक मानी दो भी मानी चार मानी आपकी,
कब तलक माना करें गर रोज फरमाइश रहे ।
फ़र्क उन्नीस-बीस का हो तो फ़रक पड़ता नहीं,
किस तरह रिश्ते चलें जब सात-सत्ताइस रहे ।
न मिले तो कोई शिकवा न करो भगवान से,
जब मिले इतनी पियो फिर न कभी ख्वाहिश रहे ।
गुल के संग हों खार जो दो-चार तो चल जाएंगे,
बाग क्या करना जहां खारों की पैदाइश रहे ।
- ओमप्रकाश तिवारी
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