दुश्मनी उसकी-मेरी ज़ाती है,
मेरे अच्छे दिनों का साथी है ।
मेरा उससे नहीं झगड़ा कोई ,
नज़र खुद बचके निकल जाती है ।
मिल के महफ़िल में मुस्कुराते हैं,
दुनियादारी निभानी आती है ।
उसकी संगत में बहुत कुछ सीखा,
हर ख़ता कुछ नया सिखाती है ।
सच कहूं वह गुनाह मेरा था ,
पीढ़ियां जिसकी सजा पाती हैं ।
Wednesday, February 6, 2008
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