Wednesday, February 6, 2008

छींटाकशी का दौर है

छींटाकशी का दौर है कपड़े बचाइए ,
बेहतर हो गर्द औरों पे खुद न उड़ाइए ।

कहना-कहाना शगल है दुनिया जहान का,
ग़र आप सही हैं तो सिर्फ मुस्कुराइए ।

मिट जाएंगे सारे गिले-शिकवे जहान के,
नज़रों को खुद की ओर जरा सा झुकाइए ।

खारे हैं पर जज़्बात का आईना हैं आंसू ,
अपने हैं कोई ग़ैर नहीं मत बहाइए ।

माना कि हैं हसीन, बड़े पुरसुकून भी ,
पर ख्वाब तो बस ख्वाब हैं अब लौट आइए ।

बेहतर था कि चुपचाप शहर को निहारते ,
अब बात निकाली है तो परदा उठाइए ।

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