बात इतनी भी नहीं है कि बढ़ाई जाए
दिल में पाए न समा होठों पे लाई जाए
है मुहब्बत के लिए सिर्फ इशारा काफी
ये कसम तो हैं नहीं नाम से खाई जाए
नज़्म आती है लबों पर जो तुम्हारी ख़ातिर
क्या जरूरी है जमाने को सुनाई जाए
खूबसूरत है इश्क की ये तिलस्मी दुनिया
दिलजलों को भी बुलाकर के दिखाई जाए
दिल के परदे को आंसुओं से धो रहा हूं मैं
जिसपे तस्वीर तेरी खूं से बनाई जाए
Saturday, April 12, 2008
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