उम्र किसने चिराग़ की देखी
उसने बांटी जो रोशनी देखी
देख न पाए जो किस्मत उनकी
हमने तो आफ़ताब सी देखी
ज़िंदगी चार दिन की कहते रहे
जिनकी नज़रों ने ख्वाब सी देखी
ये शहर छोड़ किधर जाएंगे
फैली शोहरत जनाब की देखी
ठग लिया हमको भरी आंखों ने
आब में जब शराब सी देखी
Saturday, April 12, 2008
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