कोई कहानी बता रहे हैं तेरे उलझे-उलझे बाल
हमको कितना सता रहे हैं तेरे उलझे-उलझे बाल
चुप-चुप सा है चेहरा तेरा चुप है कपड़ों की सलवट
लेकिन चुंगली लगा रहे हैं तेरे उलझे-उलझे बाल
ना-ना करती ज़ुबान तेरी ना कहती हर सुबहो-शाम
पर न्यौता दे बुला रहे हैं तेरे उलझे-उलझे बाल
थर-थर करते रुखसारों को छू लेने दो आज हमें
सह लूंगा हर सज़ा जो देंगे तेरे उलझे-उलझे बाल
मुस्काना, शर्माना , पलकों का झुक जाना धीरे से
मैं हारा इस अदा से जीते तेरे उलझे-उलझे बाल
Sunday, April 20, 2008
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1 comment:
namaskar , apaki kavite padhi bahot achha laga . savistar badme likhata hun
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