साथ निकले हैं तो फिर दूर तलक साथ चलें
छूट न जाए कहीं हाथ में ले हाथ चलें
वक्त काफी है कभी फिर करेंगे तकरारें
आज तो करते हुए दिल से दिल की बात चलें
यूं तो भर आते हैं पग चलके सिर्फ चार कदम
आप हों साथ तो दिल कहता है दिन रात चलें
लम्हे दो-चार सही हंस के गुजारे हमने
ज़िंदगी जाएगी कट करके उन्हें याद चलें
वह ख़ुदा है वो सुखा देखा उफ़नता दरिया
हम इधर आप उधर करते जो फरियाद चलें
Saturday, April 12, 2008
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1 comment:
According to current political scenario your poem title 'Bas Kafi Hai Yari Aasha' is realistic and based on true facts.
Let our politicians learn good lesson now or let they know that the hell file in the life hereafter awaits them for their deeds in this world.
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