सुबह बंधाते हैं जो आशा ,
शाम फेकते उलटा पाशा ।
कहने वाले बहुत कह गए ,
निकला सब झांसा का झांसा ।
वही रहनुमा कहलाते अब,
आती जिन्हें झूठ की भाषा ।
लोकतंत्र में हम जीते हैं ,
बस काफी है यही दिलाशा ।
राम भरोसे देश चलेगा ,
मत आने दो पास निराशा ।
Monday, April 7, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
हाँ! अब आप सही हुए हैं.
Post a Comment